13 नंबर गली का साया
(एक डिलीवरी बॉय की असली लगने वाली कहानी – रात 2:17 बजे)
"मेरा नाम रोहित है। मैं गाज़ियाबाद में एक डिलीवरी कंपनी के लिए काम करता हूँ। ये कहानी मैं अपने साथ घटी उस रात के बारे में लिख रहा हूँ जिसकी दहशत आज भी मेरी हड्डियों में समाई हुई है..."
शुरुआत: एक सामान्य रात
उस दिन भी बाकी दिनों की तरह मैं अपनी नाइट शिफ्ट में था। रात के करीब 1:45 बजे मुझे एक ऑर्डर मिला – 13 नंबर गली, कवि नगर। ये इलाका थोड़ा पुराना है, संकरी गलियाँ, टूटी-फूटी सड़कें और अंधेरे से भरी। गूगल मैप पर पता सही दिख रहा था, तो मैंने बिना कुछ सोचे अपनी बाइक स्टार्ट की और निकल पड़ा।
गली में दाखिल होते ही माहौल कुछ अजीब लगने लगा। हर घर अंधेरे में डूबा हुआ था, न कोई स्ट्रीट लाइट, न कोई आवाज़। एक अजीब सी ठंडक महसूस हो रही थी जो सिर्फ शरीर में नहीं, आत्मा तक उतरती जा रही थी।
प्लॉट नंबर 113 – एक बंद दरवाज़ा
जिस घर पर डिलीवरी देनी थी, वो था – प्लॉट नंबर 113। पुराना सा मकान, दरवाज़े की चौखट पर जले हुए दीपक के निशान थे, जैसे किसी ने वहां कभी हवन किया हो। गेट बंद था। मैंने घंटी बजाई।
5 सेकेंड... 10 सेकेंड... कोई नहीं आया।
फिर मैंने दोबारा घंटी बजाई – और दरवाज़ा खुद-ब-खुद "क़र्ररर..." की आवाज़ के साथ खुल गया।
अंदर से एक औरत की आवाज़ आई, “अंदर आ जा बेटा, मैं किचन में हूँ।”
आवाज़ जो जानी-पहचानी थी
मैं थोड़ा घबराया, लेकिन आवाज़ बहुत सधी हुई थी – जैसे माँ बुला रही हो। दरवाज़े के पास जाकर देखा – घर के अंदर कोई लाइट नहीं थी, बस एक कमरे से हल्की सी लाल रोशनी आ रही थी।
मैं अंदर गया, और ड्राइंग रूम के बीचों-बीच खड़ा हो गया। किचन से एक आकृति दिखाई दे रही थी – एक औरत जो स्टोव के पास खड़ी थी, लेकिन उसकी गर्दन 180 डिग्री उल्टी दिशा में घुमा हुआ थी।
मैं काँप गया। मैंने चिल्लाकर कहा:
“मैम... ओटीपी दे दीजिए, मैं जा रहा हूँ...”
उसने बोला:
“बेटा, पहले थोड़ा रुक जा... रोटी थोड़ी देर से बनी थी, गर्म कर देती हूँ…”
अचानक बदला माहौल
जब उसने "गर्म कर देती हूँ" कहा, तो किचन के अंदर से आग की चमक दिखने लगी – जैसे पूरा किचन जल रहा हो। उसके बाल जल रहे थे, लेकिन वह हँसे जा रही थी... एकदम डरावनी हँसी...
मेरी हिम्मत जवाब दे गई, मैं मुड़ा और दरवाज़े की तरफ भागा। लेकिन दरवाज़ा बंद हो चुका था।
आईना जिसमें सच्चाई दिखी
मैंने घर में एक पुराना आईना देखा – उसमें खुद को देखने की कोशिश की… लेकिन मैं दिख ही नहीं रहा था। उसकी जगह एक दूसरा चेहरा – एक मरा हुआ इंसान… मेरी ही डिलीवरी यूनिफॉर्म में… लेकिन आँखें लाल, मुँह से खून, और पीठ पर चाकू के निशान।
तभी मुझे समझ आया – मैं जिसे असली समझ रहा था, वो किसी और दुनिया का साया था।
बचाव – एक ट्रक ड्राइवर
मैं दरवाज़े पर ज़ोर ज़ोर से मारने लगा। चिल्लाया। तभी एक ट्रक का हॉर्न सुनाई दिया। बाहर से एक आदमी (पंजाबी एक्सेंट) ने आवाज़ लगाई:
“ओए पुत्तर! अंदर क्या कर रहा है? बाहर आ जा!”
दरवाज़ा खुला – एक झटके में मैं बाहर आ गया। सामने एक पंजाबी अंकल ट्रक के साथ खड़े थे। मैंने पूरी कहानी जल्दी से सुनाई।
उन्होंने कहा:
“बेटा, इस घर में 5 साल पहले एक माँ ने अपने बेटे के साथ आत्महत्या कर ली थी। डिलीवरी का पता कौन देता है, पता नहीं… लेकिन ये कोई पहली बार नहीं हुआ।”
आख़िरी झलक
जब मैंने पीछे मुड़कर उस घर की तरफ देखा, घर वहाँ था ही नहीं। सिर्फ एक खाली ज़मीन थी – जिसमें जली हुई लकड़ी और थोड़ी सी राख थी।
आज भी डर है...
उस रात के बाद मैंने कभी नाइट शिफ्ट नहीं ली। मेरे मैनेजर ने भी कुछ नहीं कहा, जैसे उन्हें सब पता था।
पर आज भी जब रात में कभी गूगल मैप 13 नंबर गली दिखाता है, मैं फ़ोन बंद कर देता हूँ।
अंतिम बात:
अगर आप कभी सुनसान जगह पर डिलीवरी करने जा रहे हों, और दरवाज़ा खुद से खुल जाए... तो अंदर जाने से पहले एक बार हनुमान चालीसा या वाहेगुरु का जाप ज़रूर कर लेना।
क्या पता... सामने इंसान हो... या कोई साया...
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